उत्तराखंड में पांच सीटों पर हो रहे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के 18 विधायकों के लिए अपनी जमीन बचाने की चुनौती है। अगर वह 2022 विधानसभा जैसा प्रदर्शन करने में कामयाब हो जाते हैं, तो पांच लोकसभा सीटों पर नतीजों का समीकरण बदल सकता है।
2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इनमें से एक विधायक ने भाजपा का दामन थाम लिया। बची हुई 18 सीटों पर अब कांग्रेस के विधायकों के लिए अपनी जमीन बचाने की चुनौती है। लोकसभा के हिसाब से इन 18 सीटों का गणित देखें तो टिहरी लोकसभा की 14 में से दो विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं। गढ़वाल लोकसभा में एक सीट कांग्रेस के पास थी, जो अब नहीं रही। अल्मोड़ा लोकसभा में 14 में से पांच विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं। नैनीताल-ऊधमसिंह नगर लोकसभा में 14 में से छह विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास हैं। हरिद्वार लोकसभा में भी 14 विधानसभा में से पांच सीटें कांग्रेस के पास हैं। इस लिहाज से कांग्रेस के विधायकों के पास एक चुनौती है कि कैसे वह अपनी जमीन बचाकर रखें और लोकसभा चुनाव में अपने प्रत्याशियों को बढ़त दिलाएं। इन सीटों पर अगर कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रही तो भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव नतीजे मुश्किलें पैदा करने वाले साबित हो सकते हैं।गढ़वाल लोकसभा में कुल 14 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें से एक बदरीनाथ सीट पर कांग्रेस विधायक थे, जिन्होंने हाल ही में भाजपा का दामन थाम लिया। उनके पार्टी बदलने से ये सीट खाली हो गई है। अब यहां उपचुनाव होगा। देहरादून जिले में केवल चकराता विधानसभा सीट पर ही 2022 में कांग्रेस के दिग्गज प्रीतम सिंह जीत दर्ज कर पाए थे। वह टिहरी से पिछला लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव में उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है। इसी प्रकार बाजपुर सीट पर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, खटीमा में उप नेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है।