“या देवी सर्व भूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”
उत्तरकाशी।
शारदीय नवरात्रि की प्रथम आराध्य देवी माता शैलपुत्री हैं। माता का यह रूप सती, पार्वती, दुर्गा, उमा, अपर्णा, गौरी, महेश्वरी, शिवांगी, शुभांगी, पर्वतवासिनी जैसे
अनेकानेक नामों से प्रसिद्ध है। पूर्व जन्म में इनके पिता राजा दक्ष थे। राजा दक्ष ने प्रजेश होने पर यज्ञ किया, परंतु दामाद शिव को नहीं बुलाया।

सती भगवान शंकर की स्वीकृति के बिना पिता के यहां चली गई। यज्ञस्थल पर अपना तिरस्कार एवं शिव का आसन न देखकर कुपित सती यज्ञाग्नि में कूद पड़ीं। उधर, शिव की समाधि भंग हुई, तो उन्होंने वीरभद्र नामक गण को यज्ञस्थल पर भेजा। वीरभद्र ने यज्ञशाला का विध्वंस किया और सती के जलते शरीर को लेकर चल पड़ा। धरती पर सती के अंग जिस-जिस स्थान पर गिरे, वहां- वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। सती का अगला जन्म शैलराज की पुत्री पार्वती के रूप में हुआ। पार्वती की घोर तपस्या के बाद शिव ने उनका वरण किया। पर्वतराज की पुत्री होने के कारण माता के इस प्रथम रूप का नाम शैलपुत्री पड़ा।
देवी के उपासक घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित कर माता के प्रथम चरित्र का पाठ कर मंगल फल प्राप्त करेंगे